EASY
Earn 100

राष्ट्रीय एकता की बहुत बड़ी पहचान है- राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र में अन्तर्राज्यीय व्यवहार के लिए एक राष्ट्रीय भाषा का होना आवश्यक है। भारत की राष्ट्रभाषा हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक विशाल राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो सकती है। संविधान ने हिन्दी को 'राजभाषा' माना है। भारत के राजनीतिज्ञों ने राष्ट्रीय एकता के इस सूत्र को राजनीति का मुद्दा बना दिया है। राष्ट्रीय एकता की प्रतीक हिन्दी की बात करने वालों को संकीर्णतावादी कहना ठीक नहीं है। भारत की सभी भाषाओं को विकसित और समृद्ध होने का अधिकार है। उनमें परस्पर विरोध ठीक नहीं। अंग्रेजी उनकी फूट का लाभ उठा रही है। इस देश की खूबियाँ इसी देश के चश्मे से पहचानी जा सकती हैं, विदेशी चश्मे से नहीं। अंग्रेजी प्रयोग के अपने क्षेत्र हैं। देश के चौमुखी विकास में आज उसका भी योगदान है पर वह यहाँ के आम लोगों की भाषा कभी नहीं हो सकती।

'संविधान में हिन्दी को क्या माना गया है

50% studentsanswered this correctly

Important Questions on अपठित गद्यांश एवं काव्यांश

EASY

'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

'कहानी की क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता हैं।' वाक्य किस ओर संकेत करता है?
EASY

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

खरीददारों के सम्मुख क्या सुविधा प्राप्त हुई है?

EASY

भाषा का चिन्तन प्रक्रिया में विशेष योगदान रहा है। भाषा ही वो माध्यम होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को मूक अभिव्यक्ति को स्मरण करने में सहायता मिलती है। भाषा न सिर्फ हमारे सोचने की प्रवृति में सहायता करती है बल्कि जब हम एकान्त में होते हैं तो हम यह विचार करते हैं कि यह पुनरावृति हो सकती है। सामाजिक स्तर में वाद-विवाद और प्रतिक्रिया होती है। वहाँ हमारे विचार और सोच भाषा की सहायता से विकसित व प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि विचार प्रक्रिया में भाषा एक अच्छा उपकरण है। एक व्यक्ति अपने विचारों को भाषा के माध्यम से संचित कर सकता है तथा व्यक्ति को बातचीत करने के योग्य बनाता है। हमारे चिन्तन प्रक्रिया को हमारा प्रत्यक्षीकरण प्रेरित करता है। हम अपने जीवन में आँखों से जो भी देखते हैं उस घटना का प्रभाव हमारे ऊपर बाद में रहता है। यदि हम किसी को कोई भी गलत कार्य करते देखते हैं तो उसी क्षण हमारी चिन्तन प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उस व्यक्ति को गलत कार्य को करने से कैसे रोका जाये यह विचार करने लगते हैं। यही विचारनीय प्रवृति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है जो हमारे मस्तिष्क को विचार करने के लिये विवश कर देता है। उसी प्रकार प्रतीक और चिह्न आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। साथ ही किसी वस्तु की सामान्यीकृत अवस्था या उसका वर्गीकरण संप्रत्यय के आधार पर होता है।

स्मरण शब्द का अर्थ है-

EASY

'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

'परिवेश की महक' पद का अर्थ है:
EASY

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

प्रत्यक्ष शब्द का अर्थ है:

MEDIUM

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

विदेशी व्यापार का योगदान दृष्टिगत हुआ है:

EASY

'गाँधीजी मानते थे कि सामाजिक या सामूहिक जीवन की ओर बढ़ने से पहले कौटुम्बिक जीवन का अनुभव प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए वे आश्रम-जीवन बिताते थे। वहाँ सभी एक भोजनालय में भोजन करते थे। इससे समय और धन तो बचता ही था, साथ ही सामूहिक जीवन का अभ्यास भी होता था, लेकिन यह सब होना चाहिए, समय-पालन, सुव्यवस्था और शुचिता साथ।

इस ओर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए गाँधीजी स्वयं भी सामूहिक रसोईघर में भोजन करते थे। भोजन के समय दो बार घण्टी बजती थी। जो दूसरी घण्टी बजने तक भोजनालय में नहीं पहुँच पाता था, उसे दूसरी पंक्ति के लिए बरामदे में इन्तजार करना पड़ता था। दूसरी घण्टी बजते ही रसोईघर का द्वार बन्द कर दिया जाता था, जिससे बाद में आने वाले व्यक्ति अन्दर न आने पाएँ। एक दिन गाँधीजी पिछड़ गए। संयोग से उस दिन आश्रमवासी श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी पिछड़ गए। जब वे वहाँ पहुँचे तो देखा कि बापू बरामदे में खड़े हैं। बैठने के लिए न बैंच है, न कुर्सी। हरिभाऊ ने विनोद करते हुए कहा, "बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरे में आ गए हैं।"

गाँधीजी खिलखिलाकर हँस पड़े। बोले, "कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं न?"

हरिभाऊ जी ने कहा, "बैठने के लिए कुर्सी लाऊँ, बापू?" गाँधीजी बोले, "नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। सजा पूरी भुगतनी चाहिए। उसी में सच्चा आनन्द है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

सामूहिक जीवन बिताने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है:

EASY
Directions (1 - 5) निम्नलिखित अपठित गद्यांश कें आघार पर प्रश्तों के सही विकल्प चुनकर लिखिए -
जीवन तीज तरह का होता है। पहला परोपकारी जीवन, दूसरा सत्माव्य जीवत और तीसरा अपकारी जीवना इसे उलझ, अध्यक्ष और अधटा जीवत भी काते है। उलझ जीतन ठजका होता है, लिखें दूसरों का उपकार करने से सुख का ष्टहसास होता है, अले ही उन्हें बट या नुक्सान उटात्ना पडे । इसे यबीग्र जीवन्त भी वहा जाता है । यही टैवत्वपूर्ण जीवत है। इस जीवत ब आधार यज्ञ होता है। मृगस्त्र अँ यज्ञ उसे कहा ठाया है, जिनसे प्राणीआत्र ब हित होता है। यानी जित क्यों से सआरज्ञ लें गुल, ऐश्वर्य और प्रति लें बद्रोस्तरी होती है। चार्टों वेदों ने बम ठाटा। है धरती का की या अश्यार अन्नपूर्ण जीवन ही है, राजी सत्वक्यों पर ही यह धरती टिकी हुई है। ड़सलिप्ट कहा द्यत्या है कि यदि पृथ्वी को बचाता है तो श्रेष्ठ कामों की तरपकृ संभाल को लगातार प्रेरित काबे के लिस्ट कार्यं करजा चाहिए । सत्साज्य जीवन यह होता है जो परंपरा के मुताबिक चलता है: यानी अपना और दूसरे का स्वार्थ सघत्ता रहे । कोई बहुत ऊँची सआजोत्थाज या परोपकार ही आवजा नहीं होती है। अपकारी अधि दूसरों को परेशान और दुख देने बना जीवन ही राक्षसी जीतन या शैतानी जिदणी क्ली जाती है। इस तरह के जीवन से ही सआत्न मे सभी तरह की सटास्याएँ पैदा होती हैं:
इस धरती को यदि ठ।अठप्र७रों और हिंसा से मुक्त काना है तो टैवत्वपूर्ण जीवत की तरफ विश्व और ठजाज को चलता प्रदेश । ठलप्रर्म तभी लिमिट जा सकाले हैं, जब हटा छोचर्मा३शिर का कर्ण कर्टेंणे । तित्तार के साथ क्रिया हुआ क्यों ही अपना हित तो करता है परिबार, सआरुज्ञ और दुनिया ब भी इससे अला होता है । जितजा ह्म प्राणीहित्त के लिष्ट संकल्पित होणे, उतना हमारा बौदृधिक और आब्जिक उबल होता जारनुव्या । हआरे अंदर अनुज्ञात' के आव लगातार बढ़ते जाएंयों । जि, दया ल्ठणा, अहिंसा, सत्य और सदृश्रावजा की प्रवृति लगातार वक्ती जाल । औंर ये सारे सदृशुण ही हूँगेवबमैटाज्ञ हूँगृसफ्त बजालेऔंकें लिख ज़रूरी जाले आयु है।

धरती को सभी सअस्याओं से लुवत्त काले के लिए हर्ले :
EASY

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

'सक्षम' शब्द का विलोम शब्द है:

EASY

भाषा का चिन्तन प्रक्रिया में विशेष योगदान रहा है। भाषा ही वो माध्यम होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को मूक अभिव्यक्ति को स्मरण करने में सहायता मिलती है। भाषा न सिर्फ हमारे सोचने की प्रवृति में सहायता करती है बल्कि जब हम एकान्त में होते हैं तो हम यह विचार करते हैं कि यह पुनरावृति हो सकती है। सामाजिक स्तर में वाद-विवाद और प्रतिक्रिया होती है। वहाँ हमारे विचार और सोच भाषा की सहायता से विकसित व प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि विचार प्रक्रिया में भाषा एक अच्छा उपकरण है। एक व्यक्ति अपने विचारों को भाषा के माध्यम से संचित कर सकता है तथा व्यक्ति को बातचीत करने के योग्य बनाता है। हमारे चिन्तन प्रक्रिया को हमारा प्रत्यक्षीकरण प्रेरित करता है। हम अपने जीवन में आँखों से जो भी देखते हैं उस घटना का प्रभाव हमारे ऊपर बाद में रहता है। यदि हम किसी को कोई भी गलत कार्य करते देखते हैं तो उसी क्षण हमारी चिन्तन प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उस व्यक्ति को गलत कार्य को करने से कैसे रोका जाये यह विचार करने लगते हैं। यही विचारनीय प्रवृति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है जो हमारे मस्तिष्क को विचार करने के लिये विवश कर देता है। उसी प्रकार प्रतीक और चिह्न आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। साथ ही किसी वस्तु की सामान्यीकृत अवस्था या उसका वर्गीकरण संप्रत्यय के आधार पर होता है।

विचारणीय प्रवृत्ति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है:

EASY

'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

लोक कथाओं में किस परिवेश की महक की बात की गई है?
MEDIUM

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

विभिन्न देशों के मध्य किस प्रकार के लेन-देन हुए हैं?

EASY

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

'सरल' शब्द के पर्यायवाची शब्द हैं:

EASY

'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

अनुच्छेद के आधार पर कहा जा सकता है कि इसका मुख्य बिंदु है:
MEDIUM

भाषा का चिन्तन प्रक्रिया में विशेष योगदान रहा है। भाषा ही वो माध्यम होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को मूक अभिव्यक्ति को स्मरण करने में सहायता मिलती है। भाषा न सिर्फ हमारे सोचने की प्रवृति में सहायता करती है बल्कि जब हम एकान्त में होते हैं तो हम यह विचार करते हैं कि यह पुनरावृति हो सकती है। सामाजिक स्तर में वाद-विवाद और प्रतिक्रिया होती है। वहाँ हमारे विचार और सोच भाषा की सहायता से विकसित व प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि विचार प्रक्रिया में भाषा एक अच्छा उपकरण है। एक व्यक्ति अपने विचारों को भाषा के माध्यम से संचित कर सकता है तथा व्यक्ति को बातचीत करने के योग्य बनाता है। हमारे चिन्तन प्रक्रिया को हमारा प्रत्यक्षीकरण प्रेरित करता है। हम अपने जीवन में आँखों से जो भी देखते हैं उस घटना का प्रभाव हमारे ऊपर बाद में रहता है। यदि हम किसी को कोई भी गलत कार्य करते देखते हैं तो उसी क्षण हमारी चिन्तन प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उस व्यक्ति को गलत कार्य को करने से कैसे रोका जाये यह विचार करने लगते हैं। यही विचारनीय प्रवृति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है जो हमारे मस्तिष्क को विचार करने के लिये विवश कर देता है। उसी प्रकार प्रतीक और चिह्न आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। साथ ही किसी वस्तु की सामान्यीकृत अवस्था या उसका वर्गीकरण संप्रत्यय के आधार पर होता है।

भाषा एक अच्छा उपकरण है क्योंकि:

EASY

काफी लम्बे समय से विदेशी व्यापार अलग-अलग क्षेत्रों को और देशों को आपस में सम्बन्धित किये हुए है। साधारण शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी व्यापार घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर की ओर के बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए उत्पादकों को एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कराता है। उत्पादक सिर्फ अपने देश के बाजारों में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीददारों के सम्मुख उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों के बढ़ने से चयन की सुविधा प्राप्त होती है। प्रायः वस्तुओं के उत्पादन से तथा व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन बढ़ता चला जा रहा है। अलग-अलग बाजारों में वस्तुओं की कीमत एक समान होने लगती है। अब वह समय आ चुका है जब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर बैठकर भी एक दूसरे से आमने-सामने यानि प्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार व्यापार न सिर्फ दो देशों के मिलने का सूत्र बनता है अपितु वह दो देशों की कलाओं को समन्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। इस प्रकार विभिन्न देशों में एकीकरण की भावना जागृत हुई है। विभिन्न देशों के मध्य अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का लेन-देन संभव हो सका है। एक देश दूसरे देश के आर्थिक, सांस्कृतिक और नैतिक पक्ष को समझाने में सक्षम हो पाया है। इससे सिर्फ संस्कृति का मिला हुआ है कि दूसरे देश को पूर्ण रूप से समझने में सरलता हुई है।

व्यापार के खुलने से वस्तुओं का:

EASY
Directions (1 - 5) निम्नलिखित अपठित गद्यांश कें आघार पर प्रश्तों के सही विकल्प चुनकर लिखिए -
जीवन तीज तरह का होता है। पहला परोपकारी जीवन, दूसरा सत्माव्य जीवत और तीसरा अपकारी जीवना इसे उलझ, अध्यक्ष और अधटा जीवत भी काते है। उलझ जीतन ठजका होता है, लिखें दूसरों का उपकार करने से सुख का ष्टहसास होता है, अले ही उन्हें बट या नुक्सान उटात्ना पडे । इसे यबीग्र जीवन्त भी वहा जाता है । यही टैवत्वपूर्ण जीवत है। इस जीवत ब आधार यज्ञ होता है। मृगस्त्र अँ यज्ञ उसे कहा ठाया है, जिनसे प्राणीआत्र ब हित होता है। यानी जित क्यों से सआरज्ञ लें गुल, ऐश्वर्य और प्रति लें बद्रोस्तरी होती है। चार्टों वेदों ने बम ठाटा। है धरती का की या अश्यार अन्नपूर्ण जीवन ही है, राजी सत्वक्यों पर ही यह धरती टिकी हुई है। ड़सलिप्ट कहा द्यत्या है कि यदि पृथ्वी को बचाता है तो श्रेष्ठ कामों की तरपकृ संभाल को लगातार प्रेरित काबे के लिस्ट कार्यं करजा चाहिए । सत्साज्य जीवन यह होता है जो परंपरा के मुताबिक चलता है: यानी अपना और दूसरे का स्वार्थ सघत्ता रहे । कोई बहुत ऊँची सआजोत्थाज या परोपकार ही आवजा नहीं होती है। अपकारी अधि दूसरों को परेशान और दुख देने बना जीवन ही राक्षसी जीतन या शैतानी जिदणी क्ली जाती है। इस तरह के जीवन से ही सआत्न मे सभी तरह की सटास्याएँ पैदा होती हैं:
इस धरती को यदि ठ।अठप्र७रों और हिंसा से मुक्त काना है तो टैवत्वपूर्ण जीवत की तरफ विश्व और ठजाज को चलता प्रदेश । ठलप्रर्म तभी लिमिट जा सकाले हैं, जब हटा छोचर्मा३शिर का कर्ण कर्टेंणे । तित्तार के साथ क्रिया हुआ क्यों ही अपना हित तो करता है परिबार, सआरुज्ञ और दुनिया ब भी इससे अला होता है । जितजा ह्म प्राणीहित्त के लिष्ट संकल्पित होणे, उतना हमारा बौदृधिक और आब्जिक उबल होता जारनुव्या । हआरे अंदर अनुज्ञात' के आव लगातार बढ़ते जाएंयों । जि, दया ल्ठणा, अहिंसा, सत्य और सदृश्रावजा की प्रवृति लगातार वक्ती जाल । औंर ये सारे सदृशुण ही हूँगेवबमैटाज्ञ हूँगृसफ्त बजालेऔंकें लिख ज़रूरी जाले आयु है।

सत्माच्य व्यक्ति केंसा जीवन जीते है ?
EASY

भाषा का चिन्तन प्रक्रिया में विशेष योगदान रहा है। भाषा ही वो माध्यम होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को मूक अभिव्यक्ति को स्मरण करने में सहायता मिलती है। भाषा न सिर्फ हमारे सोचने की प्रवृति में सहायता करती है बल्कि जब हम एकान्त में होते हैं तो हम यह विचार करते हैं कि यह पुनरावृति हो सकती है। सामाजिक स्तर में वाद-विवाद और प्रतिक्रिया होती है। वहाँ हमारे विचार और सोच भाषा की सहायता से विकसित व प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि विचार प्रक्रिया में भाषा एक अच्छा उपकरण है। एक व्यक्ति अपने विचारों को भाषा के माध्यम से संचित कर सकता है तथा व्यक्ति को बातचीत करने के योग्य बनाता है। हमारे चिन्तन प्रक्रिया को हमारा प्रत्यक्षीकरण प्रेरित करता है। हम अपने जीवन में आँखों से जो भी देखते हैं उस घटना का प्रभाव हमारे ऊपर बाद में रहता है। यदि हम किसी को कोई भी गलत कार्य करते देखते हैं तो उसी क्षण हमारी चिन्तन प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उस व्यक्ति को गलत कार्य को करने से कैसे रोका जाये यह विचार करने लगते हैं। यही विचारनीय प्रवृति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है जो हमारे मस्तिष्क को विचार करने के लिये विवश कर देता है। उसी प्रकार प्रतीक और चिह्न आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। साथ ही किसी वस्तु की सामान्यीकृत अवस्था या उसका वर्गीकरण संप्रत्यय के आधार पर होता है।

 चिंतन प्रक्रिया द्वारा:

EASY

भाषा का चिन्तन प्रक्रिया में विशेष योगदान रहा है। भाषा ही वो माध्यम होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को मूक अभिव्यक्ति को स्मरण करने में सहायता मिलती है। भाषा न सिर्फ हमारे सोचने की प्रवृति में सहायता करती है बल्कि जब हम एकान्त में होते हैं तो हम यह विचार करते हैं कि यह पुनरावृति हो सकती है। सामाजिक स्तर में वाद-विवाद और प्रतिक्रिया होती है। वहाँ हमारे विचार और सोच भाषा की सहायता से विकसित व प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि विचार प्रक्रिया में भाषा एक अच्छा उपकरण है। एक व्यक्ति अपने विचारों को भाषा के माध्यम से संचित कर सकता है तथा व्यक्ति को बातचीत करने के योग्य बनाता है। हमारे चिन्तन प्रक्रिया को हमारा प्रत्यक्षीकरण प्रेरित करता है। हम अपने जीवन में आँखों से जो भी देखते हैं उस घटना का प्रभाव हमारे ऊपर बाद में रहता है। यदि हम किसी को कोई भी गलत कार्य करते देखते हैं तो उसी क्षण हमारी चिन्तन प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उस व्यक्ति को गलत कार्य को करने से कैसे रोका जाये यह विचार करने लगते हैं। यही विचारनीय प्रवृति प्रत्यक्षीकरण का प्रभाव होता है जो हमारे मस्तिष्क को विचार करने के लिये विवश कर देता है। उसी प्रकार प्रतीक और चिह्न आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। साथ ही किसी वस्तु की सामान्यीकृत अवस्था या उसका वर्गीकरण संप्रत्यय के आधार पर होता है।

पुनरावृति का शुद्ध रूप है:

EASY

'गाँधीजी मानते थे कि सामाजिक या सामूहिक जीवन की ओर बढ़ने से पहले कौटुम्बिक जीवन का अनुभव प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए वे आश्रम-जीवन बिताते थे। वहाँ सभी एक भोजनालय में भोजन करते थे। इससे समय और धन तो बचता ही था, साथ ही सामूहिक जीवन का अभ्यास भी होता था, लेकिन यह सब होना चाहिए, समय-पालन, सुव्यवस्था और शुचिता साथ।

इस ओर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए गाँधीजी स्वयं भी सामूहिक रसोईघर में भोजन करते थे। भोजन के समय दो बार घण्टी बजती थी। जो दूसरी घण्टी बजने तक भोजनालय में नहीं पहुँच पाता था, उसे दूसरी पंक्ति के लिए बरामदे में इन्तजार करना पड़ता था। दूसरी घण्टी बजते ही रसोईघर का द्वार बन्द कर दिया जाता था, जिससे बाद में आने वाले व्यक्ति अन्दर न आने पाएँ। एक दिन गाँधीजी पिछड़ गए। संयोग से उस दिन आश्रमवासी श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी पिछड़ गए। जब वे वहाँ पहुँचे तो देखा कि बापू बरामदे में खड़े हैं। बैठने के लिए न बैंच है, न कुर्सी। हरिभाऊ ने विनोद करते हुए कहा, "बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरे में आ गए हैं।"

गाँधीजी खिलखिलाकर हँस पड़े। बोले, "कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं न?"

हरिभाऊ जी ने कहा, "बैठने के लिए कुर्सी लाऊँ, बापू?" गाँधीजी बोले, "नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। सजा पूरी भुगतनी चाहिए। उसी में सच्चा आनन्द है।'

गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए

'कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं न?' गाँधीजी का यह कथन इस ओर संकेत करता है कि-