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केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।


Important Questions on रचना - रचयिता
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ऊधौ मन न भये दस बीस

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पर न हिम्मत हार, प्रज्जवलित है प्राण में अब भी व्यथा का दीप।

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बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है

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बुँदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

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अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्ष्णा-लीन।
अधम व्यंजना रस-विरस, उलटी कहत प्रवीन।

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मति अति नीच ऊँच रूचि आछी।
चाहिय अमिय जग जुरइ न छाछी।।

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अमिय हलाहल, मद भरे, सेत स्याम, रतनार।
जियत, मरत, झुकि झुकि परत जेहि चितवत इक बार॥

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धरती सरग मिले हुते दोऊ।
केहि निनार के दीन्ह विछोऊ।।
