अपठित गद्यांश

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अपठित गद्यांश: Overview

इस टॉपिक में अपठित गद्यांश को हल करने की विधि का अध्ययन किया जायेगा|

Important Questions on अपठित गद्यांश

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव है ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।

देश -प्रेम का अभिप्राय है:

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हमारे देश में 'आधुनिक शिक्षा' नामक एक चीज प्रकट हुई है। इसके नाम पर यत्र-तत्र (जहाँ-तहाँ) स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सिर उठाकर खड़े हो गए हैं। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारों ओर से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के विषय में सोचता हूँ, तो उस विचार से 'साहस' क्षीण होता है। घर की चहारदीवारी में बन्द दुल्हन की तरह यह भयभीत रहती है।

बरामदे तक ही इसकी स्वतन्त्रता का साम्राज्य है। एक इंच आगे बढ़ी कि घूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है दूसरे शब्दों में, यह, केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है। माना कि यह जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझा जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नहीं बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते हैं कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

स्कूल और कॉलेजों का कुकुरमुत्तों की तरह सर उठाने से तात्पर्य है कि स्कूल और कॉलेज-

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न के उत्तर दीजिए। 

हमारे देश में 'आधुनिक शिक्षा' नामक एक चीज प्रकट हुई है। इसके नाम पर यत्र-तत्र (जहाँ-तहाँ) स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सिर उठाकर खड़े हो गए हैं। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के है बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारों ओर से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के विषय में सोचता हूँ, तो उस विचार से 'साहस' क्षीण होता है। घर की चहारदीवारी में बन्द दुल्हन की तरह यह भयभीत रहती है।

बरामदे तक ही इसकी स्वतन्त्रता का साम्राज्य है। एक इंच आगे बढ़ी कि घूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है दूसरे शब्दों में, यह, केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है। माना कि यह जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझा जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नहीं बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते हैं कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

लेखक किस विचार से सहमत नहीं है?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न के उत्तर दीजिए।

रिक्शे पर मीरा के साथ हँसती-बोलती ऋतु घर पहुँची। सीढ़ियाँ चढ़ने लगी, तो कुछ झगड़ने की आवाजें सुनाई दीं। ऊपर पहुँची तो देखा, दोनों आजू-बाजू वाली पड़ोसनें झगड़ रही थीं। अपने दरवाजे के पास खड़ी होकर उसने कुछ देर उनकी बातें सुनीं, तो झगड़े का कारण समझ में आया। एक की महरी ने घर साफ करके कचरा दूसरी के दरवाजे की ओर फेंक दिया था, इसी बात का झगड़ा था। ऋतु ने दोनों को समझाया बुझाया। आखिरकार कचरा फेंकने वाली महरी को बुलाया गया। उसने झाड़ू थामी और कचरा सीढ़ी की ओर धकेल दिया, फिर वही महरी अन्दर चली गई। दोनों पड़ोसनों ने भी अन्दर जाकर अपने-अपने द्वार बन्द कर लिए।

ऋतु खड़ी खड़ी देखती रही। जो सीढ़ी पहले से ही गन्दी थी, वह और भी गन्दी हो गई। रेत का तो साम्राज्य ही था। कहीं बादाम के छिलके पड़े थे, तो कहीं चूसी हुई ईख के लच्छे, कहीं बालों का गुच्छा उड़ रहा था, तो कहीं कुछ और। मन वितृष्णा से भर उठा। सोचा, इस सीढ़ी से चढ़कर सब अपने घर तक जाते हैं, इससे उतरकर दफ्तर, बाजार आदि अपनी इच्छित जगहों पर जाते हैं, पर इसे कोई साफ नहीं करता। उल्टे सब इस पर कचरा फेंक देते हैं। साझे की सीढ़ी है न! गन्दगी बिखेरने का हक सबको मिला है और साफ करने का कर्त्तव्य किसी का नहीं है। स्वच्छता तो जैसे अनबुझी तृष्णा हो गई।

अनुच्छेद का सन्देश है-

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

शिक्षा आज दुविधा के अजब दोराहे पर खड़ी है। एक रास्ता चकाचौध का है, मृगतृष्णा का है। बाजार की मृगतृष्णा शिक्षार्थी को लोभ-लालच देकर अपनी तरफ दौड़ाते रहने को विवश करने को उतारू खड़ी है। बाजार के इन ललचाने वाले रास्तों पर आकर्षण है, चकाचौध है और सम्मोहित कर देने वाले सपने है। दूसरी तरफ शिक्षा का साधना मार्ग है, जो शान्ति दे सकता है, सन्तोष दे सकता है और हमारे आत्मतत्व को पचल करता हुआ विवेक दे सकता है। निश्चित हो वह मार्ग श्रेयस्कर है, मगर अपनी ओर आकर्षित करने वाले बाजार का मार्ग प्रेयस्कर है।इस दोराहे पर खड़ा शिक्षार्थी बाजार को चुन लेता है। लाखों-करोड़ों लोग आज इसी रास्ते के लालच में आ गए हैं। और शिक्षा के भँवरजाल में फँस गए हैं। बाजार की खूबी यही है कि वह फँसने का अहसास किसी को नहीं होने देता और मनुष्य लगातार फँसता चला जाता है। किसी को यह महसूस नहीं होता कि वह दलदल में है, बल्कि महसूस यह होता है कि बाजार द्वारा दिए गए पैकेज के कारण वह सुखी है। अब यह अलग बात है कि सच्चा सुख क्या है? और सुख का भ्रम क्या है ? जरूरत विचार करने की है। सवाल यह है कि बाजार विचार करने का भी अवकाश देता है या कि नहीं।

"दूसरी तरफ शिक्षा का साधना मार्ग है“- तो पहली तरफ क्या है?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

मेरे मकान के आगे चौराहे पर ढाबे के आगे फुटपाथ पर खाना खाने वाले लोग बैठते हैं-रिक्शेवाले, मजदूर, फेरीवाले और कबाड़ी वाले...। आना-जाना लगा ही रहता है। लोग कहते हैं “आपको बुरा नहीं लगता? लोग सड़क पर गन्दी फैला रहे हैं। और आप इन्हें बरदाश्त कर रहे हैं? इनके कारण पूरे मोहल्ले की आबोहवा खराब हो रही है।"

मैं उनकी बातों को हल्के में ही लेता हूँ। मुझे पता है कि यहाँ जो लोग जुटते हैं, वे गरीब लोग होते हैं। अपने काम-धाम के बीच रोटी खाने चले आते हैं और खाकर चले जाते हैं। ये आमतौर पर बिहार से आए गरीब एवं ईमानदार लोग हैं, जो हमारे इस परिसर के स्थायी सदस्य हो गए हैं। ये उन अशिष्ट अमीरों से भिन्न हैं, जो साधारण सी बात पर भी हंगामा खड़ा कर देते हैं। लोगों के पास पैसा तो आ गया, पर घनी होने का शऊर नहीं आया। 'अधजल गगरी छलकत जाए' की तर्ज पर इनमें दिखावे की भावना उबाल खाती है।

असल में यह ढाबा हमें भी अपने माहौल से जोड़ता है। मैं लेखक हूँ तो क्या हुआ? गाँव के एक सामान्य घर से आया हुआ व्यक्ति हूँ। बचपन में गाँव-घरों की गरीबी देखी है और भोगी भी है। खेतों की मिट्टी में रमा हूँ, वह मुझमें रमी है। आज भी उस मिट्टी को झाडझूड़ कर भले ही शहरी बनने की कोशिश करता हूँ, बन नहीं पाता। वह मिट्टी बाहर से चाहे न दिखाई दे, अपनी महक और रसमयता से वह मेरे भीतर बसी हुई है, इसीलिए मुझे मिट्टी से जुड़े ये तमाम लोग भाते हैं। इस दुनिया में कहा-सुनी होती है, हाथापाई भी हो जाती है, लेकिन कोई किसी के प्रति गाँठ नहीं बाँधता। दूसरे-तीसरे ही दिन परस्पर हँसते बतियाते और एक-दूसरे के दुःख दर्द में शामिल होते दिखाई पड़ते हैं। ये सभी कभी न कभी एक दूसरे से लड़ चुके हैं, लेकिन कभी इसकी प्रतीति नहीं होती कि ये लड़ चुके है। कल के गुस्से को अगले दिन धूल की तरह झाड़कर फेंक देते हैं।

‘अधजल गगरी छलकत जाए’ किसके संदर्भ में कहा गया है?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

मेरे मकान के आगे चौराहे पर ढाबे के आगे फुटपाथ पर खाना खाने वाले लोग बैठते हैं-रिक्शेवाले, मजदूर, फेरीवाले और कबाड़ी वाले...। आना-जाना लगा ही रहता है। लोग कहते हैं “आपको बुरा नहीं लगता? लोग सड़क पर गन्दी फैला रहे हैं। और आप इन्हें बरदाश्त कर रहे हैं? इनके कारण पूरे मोहल्ले की आबोहवा खराब हो रही है।"

मैं उनकी बातों को हल्के में ही लेता हूँ। मुझे पता है कि यहाँ जो लोग जुटते हैं, वे गरीब लोग होते हैं। अपने काम-धाम के बीच रोटी खाने चले आते हैं और खाकर चले जाते हैं। ये आमतौर पर बिहार से आए गरीब एवं ईमानदार लोग हैं, जो हमारे इस परिसर के स्थायी सदस्य हो गए हैं। ये उन अशिष्ट अमीरों से भिन्न हैं, जो साधारण सी बात पर भी हंगामा खड़ा कर देते हैं। लोगों के पास पैसा तो आ गया, पर घनी होने का शऊर नहीं आया। 'अधजल गगरी छलकत जाए' की तर्ज पर इनमें दिखावे की भावना उबाल खाती है।

असल में यह ढाबा हमें भी अपने माहौल से जोड़ता है। मैं लेखक हूँ तो क्या हुआ? गाँव के एक सामान्य घर से आया हुआ व्यक्ति हूँ। बचपन में गाँव-घरों की गरीबी देखी है और भोगी भी है। खेतों की मिट्टी में रमा हूँ, वह मुझमें रमी है। आज भी उस मिट्टी को झाडझूड़ कर भले ही शहरी बनने की कोशिश करता हूँ, बन नहीं पाता। वह मिट्टी बाहर से चाहे न दिखाई दे, अपनी महक और रसमयता से वह मेरे भीतर बसी हुई है, इसीलिए मुझे मिट्टी से जुड़े ये तमाम लोग भाते हैं। इस दुनिया में कहा-सुनी होती है, हाथापाई भी हो जाती है, लेकिन कोई किसी के प्रति गाँठ नहीं बाँधता। दूसरे-तीसरे ही दिन परस्पर हँसते बतियाते और एक-दूसरे के दुःख दर्द में शामिल होते दिखाई पड़ते हैं। ये सभी कभी न कभी एक दूसरे से लड़ चुके हैं, लेकिन कभी इसकी प्रतीति नहीं होती कि ये लड़ चुके है। कल के गुस्से को अगले दिन धूल की तरह झाड़कर फेंक देते हैं।

साधारण बात पर भी हंगामा कौन खड़ा कर देते हैं?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

मेरे मकान के आगे चौराहे पर ढाबे के आगे फुटपाथ पर खाना खाने वाले लोग बैठते हैं-रिक्शेवाले, मजदूर, फेरीवाले और कबाड़ी वाले...। आना-जाना लगा ही रहता है। लोग कहते हैं “आपको बुरा नहीं लगता? लोग सड़क पर गन्दी फैला रहे हैं। और आप इन्हें बरदाश्त कर रहे हैं? इनके कारण पूरे मोहल्ले की आबोहवा खराब हो रही है।"

मैं उनकी बातों को हल्के में ही लेता हूँ। मुझे पता है कि यहाँ जो लोग जुटते हैं, वे गरीब लोग होते हैं। अपने काम-धाम के बीच रोटी खाने चले आते हैं और खाकर चले जाते हैं। ये आमतौर पर बिहार से आए गरीब एवं ईमानदार लोग हैं, जो हमारे इस परिसर के स्थायी सदस्य हो गए हैं। ये उन अशिष्ट अमीरों से भिन्न हैं, जो साधारण सी बात पर भी हंगामा खड़ा कर देते हैं। लोगों के पास पैसा तो आ गया, पर घनी होने का शऊर नहीं आया। 'अधजल गगरी छलकत जाए' की तर्ज पर इनमें दिखावे की भावना उबाल खाती है।

असल में यह ढाबा हमें भी अपने माहौल से जोड़ता है। मैं लेखक हूँ तो क्या हुआ? गाँव के एक सामान्य घर से आया हुआ व्यक्ति हूँ। बचपन में गाँव-घरों की गरीबी देखी है और भोगी भी है। खेतों की मिट्टी में रमा हूँ, वह मुझमें रमी है। आज भी उस मिट्टी को झाडझूड़ कर भले ही शहरी बनने की कोशिश करता हूँ, बन नहीं पाता। वह मिट्टी बाहर से चाहे न दिखाई दे, अपनी महक और रसमयता से वह मेरे भीतर बसी हुई है, इसीलिए मुझे मिट्टी से जुड़े ये तमाम लोग भाते हैं। इस दुनिया में कहा-सुनी होती है, हाथापाई भी हो जाती है, लेकिन कोई किसी के प्रति गाँठ नहीं बाँधता। दूसरे-तीसरे ही दिन परस्पर हँसते बतियाते और एक-दूसरे के दुःख दर्द में शामिल होते दिखाई पड़ते हैं। ये सभी कभी न कभी एक दूसरे से लड़ चुके हैं, लेकिन कभी इसकी प्रतीति नहीं होती कि ये लड़ चुके है। कल के गुस्से को अगले दिन धूल की तरह झाड़कर फेंक देते हैं।

लेखक लोगों की शिकायतों को हल्के में लेता है, क्योंकि:

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

शिक्षा आज दुविधा के अजब दोराहे पर खड़ी है। एक रास्ता चकाचौध का है, मृगतृष्णा का है। बाजार की मृगतृष्णा शिक्षार्थी को लोभ-लालच देकर अपनी तरफ दौड़ाते रहने को विवश करने को उतारू खड़ी है। बाजार के इन ललचाने वाले रास्तों पर आकर्षण है, चकाचौध है और सम्मोहित कर देने वाले सपने है। दूसरी तरफ शिक्षा का साधना मार्ग है, जो शान्ति दे सकता है, सन्तोष दे सकता है और हमारे आत्मतत्व को पचल करता हुआ विवेक दे सकता है। निश्चित हो वह मार्ग श्रेयस्कर है, मगर अपनी ओर आकर्षित करने वाले बाजार का मार्ग प्रेयस्कर है।इस दोराहे पर खड़ा शिक्षार्थी बाजार को चुन लेता है। लाखों-करोड़ों लोग आज इसी रास्ते के लालच में आ गए हैं। और शिक्षा के भँवरजाल में फँस गए हैं। बाजार की खूबी यही है कि वह फँसने का अहसास किसी को नहीं होने देता और मनुष्य लगातार फँसता चला जाता है। किसी को यह महसूस नहीं होता कि वह दलदल में है, बल्कि महसूस यह होता है कि बाजार द्वारा दिए गए पैकेज के कारण वह सुखी है। अब यह अलग बात है कि सच्चा सुख क्या है? और सुख का भ्रम क्या है ? जरूरत विचार करने की है। सवाल यह है कि बाजार विचार करने का भी अवकाश देता है या कि नहीं।

निम्न में से कौन-सी विशेषता बाजार की नहीं है?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।

शिक्षा आज दुविधा के अजब दोराहे पर खड़ी है। एक रास्ता चकाचौध का है, मृगतृष्णा का है। बाजार की मृगतृष्णा शिक्षार्थी को लोभ-लालच देकर अपनी तरफ दौड़ाते रहने को विवश करने को उतारू खड़ी है। बाजार के इन ललचाने वाले रास्तों पर आकर्षण है, चकाचौध है और सम्मोहित कर देने वाले सपने है। दूसरी तरफ शिक्षा का साधना मार्ग है, जो शान्ति दे सकता है, सन्तोष दे सकता है और हमारे आत्मतत्व को पचल करता हुआ विवेक दे सकता है। निश्चित हो वह मार्ग श्रेयस्कर है, मगर अपनी ओर आकर्षित करने वाले बाजार का मार्ग प्रेयस्कर है।इस दोराहे पर खड़ा शिक्षार्थी बाजार को चुन लेता है। लाखों-करोड़ों लोग आज इसी रास्ते के लालच में आ गए हैं। और शिक्षा के भँवरजाल में फँस गए हैं। बाजार की खूबी यही है कि वह फँसने का अहसास किसी को नहीं होने देता और मनुष्य लगातार फँसता चला जाता है। किसी को यह महसूस नहीं होता कि वह दलदल में है, बल्कि महसूस यह होता है कि बाजार द्वारा दिए गए पैकेज के कारण वह सुखी है। अब यह अलग बात है कि सच्चा सुख क्या है? और सुख का भ्रम क्या है ? जरूरत विचार करने की है। सवाल यह है कि बाजार विचार करने का भी अवकाश देता है या कि नहीं।

लेखक ने शिक्षा के संदर्भ मे किस बात को महत्त्व दिया है?

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएं परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (1),(2),(3),(4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इन पांचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है, और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-14
राघव की माँ को लगा था जैसे (1) की एक पागल आंधी ने उसे भारत से उठा कर (2) में फेंक दिया हो। जिस एकमात्र बेटे के परिवार के बसने पर उसकी (3) सारी हसरतें टिकी थीं, उस लाड़ले ने एक ऐसा (4) सामने रख दिया था जो एक दुर्गम और अलंघ्य (5) की तरह माँ के सामने उपस्थित हो गया। फैसला भी ऐसा जो कम-से-कम भारत वर्ष की प्रकृति का तो बिल्कुल ही नहीं था। राघव ने दृढ़ता से कहा, 'अब मुझसे शादी करना (6) नहीं होगा, माँ। घर-गृहस्थी में देने के लिए मेरे पास (7) टाइम नहीं है, न सिर्फ मेरे पास, बल्कि रंजना के पास भी नहीं। देख ही रही हो, हम दोनों के ही जॉब की (8) ऐसी है कि रात ग्यारह बजे तक हमें रत्ती भर फुर्सत नहीं मिलती। इसलिए हमने मिलकर तय किया है कि फिलहाल शादी के (9) में न बंधें।' माँ पर मानों घड़ों पानी पड़ गया। वो (10) लगी कि लिव-इन-रिलेशनशिप का भूत मेरे बेटे को ही लगना था!

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नीचे (A), (B), (C), (D), (E) और (F) में छः कथन दिए गए हैं। इन सभी कथनों (A), (B), (C), (D), (E) और (F) को इस तरह व्यवस्थित करिए कि छहों कथनों का एक अर्थपूर्ण परिच्छेद बन जाए। फिर उसके बाद दिए गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(A) भोर की रक्तिम किरण से जंगखाए लोहे की मंजूषा पर हल्की सी चमक आई।
(B) बेटी ने खजाना अपने अध्यापक को दिखाया जिसे लिखने का शौक था।
(C) अचानक एक भारी और सख्त चीज से छू जाने पर वह चौंका।
(D) अगले हफ्ते स्थानीय अखबार में सौ साल पुराने खतों पर आधारित एक कहानी छपी।
(E) मछुआरा मुंह अंधेरे जाल समेट कर किनारे पर आया और मछलियां सहेजने लगा।
(F) मछुआरे की बिटिया को मंजूषा के अंदर एक सुंदर डिबिया में अनोखा खजाना मिला।
निम्न में से पांचवा वाक्य कौन सा होना चाहिए

 

EASY
IMPORTANT

निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं और प्रत्येक के सामने (1), (2), (3), (4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इनमें से कोई एक रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प को ज्ञात करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-21
प्रोफेसर प्राचीन प्रसाद कहते हैं कि किसी (1) में कोयल कुहू-कुहू (2) थी और पपीहा पीहू-पीहू रटता था। लोग पहली (3) गाय के लिए निकालते थे और (4) कुत्ते के लिए। मुसलमान की बेटी की शादी हो तो हिन्दू (5) का सगुन लेकर जाते थे और हिंदू की बेटी की शादी हो तो मुसलमान (6) लेकर। अब तो कहते हैं कोयल बोलती नहीं, बोलता है। और अगर हम उसे गाना समझें तो हमारी (7) असल में तो है वह मेटिंग कॉल। भैया आज का युग मीडिया और (8) का युग है। बस सूचना को अंबार लगाते जाइए। न कुछ सोचिए, ने देखिए। अब तो लोगों को यह तक नहीं मालूम की नारियल, सेब, केला और नींबू में से किसका (9) कांटेदार होता है। सही जवाब बता सकने वाले नरपुंगव या नारीरत्न को (10) प्रसन्न होकर हजारों रुपये का पुरस्कार देते हैं।

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निर्देश : नीचे दिए गए परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं और प्रत्येक के सामने (1), (2), (3), (4) और (5) विकल्प दिए गए हैं। इनमें से कोई एक रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प को ज्ञात करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
अनुच्छेद-21
प्रोफेसर प्राचीन प्रसाद कहते हैं कि किसी (1) में कोयल कुहू-कुहू (2) थी और पपीहा पीहू-पीहू रटता था। लोग पहली (3) गाय के लिए निकालते थे और (4) कुत्ते के लिए। मुसलमान की बेटी की शादी हो तो हिन्दू (5) का सगुन लेकर जाते थे और हिंदू की बेटी की शादी हो तो मुसलमान (6) लेकर। अब तो कहते हैं कोयल बोलती नहीं, बोलता है। और अगर हम उसे गाना समझें तो हमारी (7) असल में तो है वह मेटिंग कॉल। भैया आज का युग मीडिया और (8) का युग है। बस सूचना को अंबार लगाते जाइए। न कुछ सोचिए, ने देखिए। अब तो लोगों को यह तक नहीं मालूम की नारियल, सेब, केला और नींबू में से किसका (9) कांटेदार होता है। सही जवाब बता सकने वाले नरपुंगव या नारीरत्न को (10) प्रसन्न होकर हजारों रुपये का पुरस्कार देते हैं।