अपठित गद्यांश

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अपठित गद्यांश: Overview

इस टॉपिक के अंतर्गत शिक्षार्थी गद्यांशों का अध्ययन कर स्मृति या पुनरावलोकन के आधार पर गद्यांश आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि का अध्ययन करते हैं।

Important Questions on अपठित गद्यांश

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Directions (1 - 5) निम्नलिखित अपठित गद्यांश कें आघार पर प्रश्तों के सही विकल्प चुनकर लिखिए -
जीवन तीज तरह का होता है। पहला परोपकारी जीवन, दूसरा सत्माव्य जीवत और तीसरा अपकारी जीवना इसे उलझ, अध्यक्ष और अधटा जीवत भी काते है। उलझ जीतन ठजका होता है, लिखें दूसरों का उपकार करने से सुख का ष्टहसास होता है, अले ही उन्हें बट या नुक्सान उटात्ना पडे । इसे यबीग्र जीवन्त भी वहा जाता है । यही टैवत्वपूर्ण जीवत है। इस जीवत ब आधार यज्ञ होता है। मृगस्त्र अँ यज्ञ उसे कहा ठाया है, जिनसे प्राणीआत्र ब हित होता है। यानी जित क्यों से सआरज्ञ लें गुल, ऐश्वर्य और प्रति लें बद्रोस्तरी होती है। चार्टों वेदों ने बम ठाटा। है धरती का की या अश्यार अन्नपूर्ण जीवन ही है, राजी सत्वक्यों पर ही यह धरती टिकी हुई है। ड़सलिप्ट कहा द्यत्या है कि यदि पृथ्वी को बचाता है तो श्रेष्ठ कामों की तरपकृ संभाल को लगातार प्रेरित काबे के लिस्ट कार्यं करजा चाहिए । सत्साज्य जीवन यह होता है जो परंपरा के मुताबिक चलता है: यानी अपना और दूसरे का स्वार्थ सघत्ता रहे । कोई बहुत ऊँची सआजोत्थाज या परोपकार ही आवजा नहीं होती है। अपकारी अधि दूसरों को परेशान और दुख देने बना जीवन ही राक्षसी जीतन या शैतानी जिदणी क्ली जाती है। इस तरह के जीवन से ही सआत्न मे सभी तरह की सटास्याएँ पैदा होती हैं:
इस धरती को यदि ठ।अठप्र७रों और हिंसा से मुक्त काना है तो टैवत्वपूर्ण जीवत की तरफ विश्व और ठजाज को चलता प्रदेश । ठलप्रर्म तभी लिमिट जा सकाले हैं, जब हटा छोचर्मा३शिर का कर्ण कर्टेंणे । तित्तार के साथ क्रिया हुआ क्यों ही अपना हित तो करता है परिबार, सआरुज्ञ और दुनिया ब भी इससे अला होता है । जितजा ह्म प्राणीहित्त के लिष्ट संकल्पित होणे, उतना हमारा बौदृधिक और आब्जिक उबल होता जारनुव्या । हआरे अंदर अनुज्ञात' के आव लगातार बढ़ते जाएंयों । जि, दया ल्ठणा, अहिंसा, सत्य और सदृश्रावजा की प्रवृति लगातार वक्ती जाल । औंर ये सारे सदृशुण ही हूँगेवबमैटाज्ञ हूँगृसफ्त बजालेऔंकें लिख ज़रूरी जाले आयु है।

धरती को सभी सअस्याओं से लुवत्त काले के लिए हर्ले :

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Directions (1 - 5) निम्नलिखित अपठित गद्यांश कें आघार पर प्रश्तों के सही विकल्प चुनकर लिखिए -
जीवन तीज तरह का होता है। पहला परोपकारी जीवन, दूसरा सत्माव्य जीवत और तीसरा अपकारी जीवना इसे उलझ, अध्यक्ष और अधटा जीवत भी काते है। उलझ जीतन ठजका होता है, लिखें दूसरों का उपकार करने से सुख का ष्टहसास होता है, अले ही उन्हें बट या नुक्सान उटात्ना पडे । इसे यबीग्र जीवन्त भी वहा जाता है । यही टैवत्वपूर्ण जीवत है। इस जीवत ब आधार यज्ञ होता है। मृगस्त्र अँ यज्ञ उसे कहा ठाया है, जिनसे प्राणीआत्र ब हित होता है। यानी जित क्यों से सआरज्ञ लें गुल, ऐश्वर्य और प्रति लें बद्रोस्तरी होती है। चार्टों वेदों ने बम ठाटा। है धरती का की या अश्यार अन्नपूर्ण जीवन ही है, राजी सत्वक्यों पर ही यह धरती टिकी हुई है। ड़सलिप्ट कहा द्यत्या है कि यदि पृथ्वी को बचाता है तो श्रेष्ठ कामों की तरपकृ संभाल को लगातार प्रेरित काबे के लिस्ट कार्यं करजा चाहिए । सत्साज्य जीवन यह होता है जो परंपरा के मुताबिक चलता है: यानी अपना और दूसरे का स्वार्थ सघत्ता रहे । कोई बहुत ऊँची सआजोत्थाज या परोपकार ही आवजा नहीं होती है। अपकारी अधि दूसरों को परेशान और दुख देने बना जीवन ही राक्षसी जीतन या शैतानी जिदणी क्ली जाती है। इस तरह के जीवन से ही सआत्न मे सभी तरह की सटास्याएँ पैदा होती हैं:
इस धरती को यदि ठ।अठप्र७रों और हिंसा से मुक्त काना है तो टैवत्वपूर्ण जीवत की तरफ विश्व और ठजाज को चलता प्रदेश । ठलप्रर्म तभी लिमिट जा सकाले हैं, जब हटा छोचर्मा३शिर का कर्ण कर्टेंणे । तित्तार के साथ क्रिया हुआ क्यों ही अपना हित तो करता है परिबार, सआरुज्ञ और दुनिया ब भी इससे अला होता है । जितजा ह्म प्राणीहित्त के लिष्ट संकल्पित होणे, उतना हमारा बौदृधिक और आब्जिक उबल होता जारनुव्या । हआरे अंदर अनुज्ञात' के आव लगातार बढ़ते जाएंयों । जि, दया ल्ठणा, अहिंसा, सत्य और सदृश्रावजा की प्रवृति लगातार वक्ती जाल । औंर ये सारे सदृशुण ही हूँगेवबमैटाज्ञ हूँगृसफ्त बजालेऔंकें लिख ज़रूरी जाले आयु है।

सत्माच्य व्यक्ति केंसा जीवन जीते है ?

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मलयाचल की तुलना की गई है?

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सूरदास के साहित्य की विशेषता है:

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कालिदास की काव्य-क्षमता तुलनीय है:

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संकेत अधिगम के अंतर्गत सीखने का प्रभावशाली घटक है:

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कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।

जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।

मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।

निम्नलिखित में से गोपियों के प्रेमाभाव विह्वल होने के पीछे कौन उत्प्रेरक का कार्य करता है?

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।


देश-प्रेम का अंकुर विद्यमान है-

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।


वही देश महान है जहाँ के लोग-

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।


संध्या समय पक्षी अपने घोंसले में वापिस चले जाते हैं, क्योंकि-

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।


सच्चा देश-प्रेमी: 

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव है ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।

देश -प्रेम का अभिप्राय है:

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'राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभिमान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, पर सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के प्रति हम अत्यन्त उदासीन रहते हैं, क्योंकि हमारा देश प्रकाश से हीन है।

मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचे रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते हैं, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते हैं, पैसा तो अन्ततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यन्त छोटे हिस्से, 5% और आबादी के अन्य 95% के बीच की दूरी समुद्र से भी अधिक चौड़ी है।'

गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि?

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'विद्याभ्यासी पुरुष को साथियों का अभाव कभी नहीं रहता। उसकी कोठरी में सदा ऐसे लोगों का वास रहता है, जो अमर हैं। वे उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करने और उसे समझाने के लिए सदा मे प्रस्तुत रहते हैं। कवि, दार्शनिक और विद्वान्, जिन्होंने प्रकृति के रहस्यों का उद्घाटन किया है और बड़े-बड़े महात्मा, जिन्होंने आत्मा के गूढ़ रहस्यों की थाह लगा ली है, सदा उसकी बातें सुनने और उसकी शंकाओं का समाधान करने के लिए उद्यत रहते हैं।बिना किसी उद्देश्य के सरसरी तौर पर पुस्तकों के पन्ने उलटते जाना अध्ययन नहीं है। लिखी हुई बातों को विचारपूर्वक पूर्ण रूप से हृदय से ग्रहण करने का नाम अध्ययन है। प्रत्येक स्त्री-पुरुष को अपने पढ़ने का उद्देश्य स्थित कर लेना चाहिए। है इसके लिए सबसे मुख्य बात यह है कि पढ़ना नियमपूर्वक हो अर्थात् इसके लिए नित्य का समय उपयुक्त होता है।'

विद्या का अभ्यास करने वाले व्यक्तियों को साथियों की कमी महसूस नहीं होती है, क्योंकि?

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'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

'परिवेश की महक' पद का अर्थ है?

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'लोक कथाएँ हमारे आम जीवन में सदियों से रची-बसी हैं। इन्हें हम अपने बड़े-बूढ़ों से बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। लोक कथाओं के बारे में यह भी कहा जाता है कि बचपन के शुरुआती वर्षों में बच्चों को अपने परिवेश की महक, सोच व कल्पना की उड़ान देने के लिए इनका उपयोग जरूरी है। हम यह भी सुनते हैं कि बच्चों के भाषा के विकास के सन्दर्भ में भी इन कथाओं की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है।

ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन लोक कथाओं के विभिन्न रूपों में हमें लोक जीवन के तत्त्व मिलते हैं, जो बच्चों के भाषा विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते अगर हम अपनी पढ़ी हुई लोक कथाओं को याद करें, तो सहजता से हमें इनके कई उदाहरण मिल जाते हैं।

जब हम कहानी सुना रहे होते हैं, तो बच्चों से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि वे पहली घटी घटनाओं को जरूर दोहराएँ। बच्चे भी घटना को याद रखते हुए साथ-साथ मजे से दोहराते हैं। इस तरह कथा सुनाने की इस प्रक्रिया में बच्चे इन घटनाओं को एक क्रम में रखकर देखते हैं। इन क्रमिक घटनाओं में एक तर्क होता है, जो बच्चों के मनोभावों से मिलता-जुलता है।'

लोक कथाओं में किस परिवेश की महक की बात की गई है?

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'अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है। हालाँकि प्रत्येक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या ज़रूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता को समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें। इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है। बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की गृह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है। इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज मैं कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे। पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज़ है- साइंस, जिसमें उसने तरक्क़ी की, लेकिन जिन साइण्टिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइण्टिस्ट अपने कल्चर में उलझे रहते हैं। उनका यह कल्चर आधुनिकता का झण्डाबरदार है। यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्चर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा। अगर यह असर हुआ है, तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए?'

हर देश ने-

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अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है। हालाँकि प्रत्येक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या ज़रूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता को समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें। इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है। बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की गृह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है। इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज मैं कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे। पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज़ है- साइंस, जिसमें उसने तरक्क़ी की, लेकिन जिन साइण्टिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइण्टिस्ट अपने कल्चर में उलझे रहते हैं। उनका यह कल्चर आधुनिकता का झण्डाबरदार है। यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्चर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा। अगर यह असर हुआ है, तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए?

लेखक ने किस बात की अस्पष्टता की ओर संकेत किया है?